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प्रफुल्लित रघुकुल के वृंदावन शुभ संस्कृति नव संस्कारों दुख-तम का तुम हरण करो कोमल हो स्त्री हो कल न हो कोई अनकही सिहरन हो हो सकता है तुम एक किरण हो तुम हरजाई माओवादी

Hindi हो दीप्तिमान Poems